Wednesday, March 24, 2010

शब्द यानि शिक्षा का महत्व

शब्द बीज_
मैंने बोया
एक बीज शब्द का
मरुस्थल में.
वहां लहलहाई
शब्दों की खेती.
फिर बहने लगी
एक नदी
शब्दों की
कविता बनकर
उस मरुस्थल में.
एक दिन कुछ और नदियाँ
शब्दों की आकर मिली
उसी मरुस्थल में.
और
बन गया एक सागर
शब्दों का
मरुस्थल में.
अब मरुस्थल
मरुस्थल नहीं रहा
अपितु
बन गया है
साहित्य सागर.
साहित्य सागर में
तैरती हैं नौकाएं
मानवता का सन्देश देती हुई
शिक्षा का प्रसार करती हुई
और उससे भी अधिक
आदमी को इंसान बनाती हुई

शब्द बीज
बहुत शक्तिशाली है
आओ हम सब मिलकर लगायें
एक-एक शब्द बीज
रेगिस्तान में
दलदली व बंजर भूमि में
पर्वत-पहरों पर
जंगलों में
और
खेत-खलिहानों में.
ताकि
पैदा हो सकें
अनेक शब्द
जिससे भरपूर रहें
हमारी बुद्धि के गोदाम
तथा मिटा सकें भूख
अपने अहंकार की
झूठे स्वार्थ की
जातीय घर्णा की
सत्ता लोलुपता की
तथा
निरंकुश आतंकवाद की.

शायद
तब ही मनुष्य
इंसान बन पायेगा
जब
शब्दों की
सार्थक एवं पोष्टिक खुराक से
उसका पेट भर जाएगा.

डॉ अ किर्तिवर्धन
९९११३२३७३२
०१३१२६०४९५०

Tuesday, March 23, 2010

अल्पायें

दोस्तों,वर्तमान दौर मे व्यक्तिवादी एवं अहंकारी विचारधारा तथा कुछ वास्तविकताओं के द्रष्टिगत एक रचना लिखी है.आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है.

अल्पायें
हमने
अपना नियम
अलग बनाया है.

लिखा
जो कुछ
सच बताया है.

विनम्रता
किसी समय
मानवीय संस्कार थी.

हमने
विनम्रता को
कायरता बताया है.

मानिए
अथवा नहीं
क्या जाता है

हमने
अपना नियम
अलग बनाया है.

सत्य
हरिश्चंद्र का
प्रयाय्वाची बना है.

हमने
सत्य को
समयानुसार बदला है.

शास्त्रानुसार
सत्य की
यही परिभाषा है.

झूठ
बोलना नहीं
यह विचारा है.

गाय
पीछे कसाई
हाथ दिखाया है.

कसाई
ताकतवर था
स्वार्थ संवारा है.

सहकर
दरवाजे पर
क्या बाहर आऊं?

नहीं
पुत्र से
मना करा दूँ

व्यवहार
सत्य पर
भारी हो गया .

नियम
मेरा अपना
सत्य हो गया.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०१३१२६०४९५०
९९११३२३७३२

अल्पायें