Saturday, November 28, 2009

ख्वाब

ख्वाब
ख्वाब ही हैं जो जिंदगी को
जीना सिखा देते हैं
ख्वाब ही हैं जो मौत से भी
लड़ना सिखा देते हैं
आप तो बस टूटे हुए
ख्वाबों की बात करते हो
हम टूटे हुए ख्वाब को भी
ख्वाब में मुकम्मल बना देते हैं.

हम ख्वाब देखते हैं मगर
हकीकत में जिया करते हैं
ख्वाब को मंजिल नहीं,
रास्ता कहा करते हैं.
आप ख्वाब देखकर बस
ख्यालों में खो जाते हो
हम ख्यालों को भी ख्वाब में
हकीकत बनाया करते हैं.
डॉ अ किर्तिवर्धन
09911323732

Sunday, November 15, 2009

चाहत १९७७ मे लिखी रचना

चाहत
तू ऐसे आज नज़र आई
जैसे हो भोर अँधेरे की
तुझको गर दीपक मानूं तो
में कीट पतंगा बन जाऊं
तुझको गर साकी मानूं तो
में एक प्याला बन जाऊं
तू बन जाए गर हरियाली
में कीट पतंगा बन जाऊं
तू स्वर्ग लोक को जाए तो
में साधू कोई बन जाऊं
तू नरक लोक को जाए तो
में पापी कोई बन जाऊं
तू कहीं नज़र न आये तो
में आंसू बन कर बह जाऊं.
डॉ अ किर्तिवर्धन

Monday, September 28, 2009

वेदना

वेदना
प्रत्येक माह मे एक बार
तीन चार दीन के लिए
जब पीड़ित होती हूँ
एक वेदना से,
टूटता है बदन मेरा
आहत होती हूँ मैं
दर्द ना सहने से,
जब मुझे होती है
जरूरत
किसी की संवेदनाओं की
चाहत होती है
तुम्हारी बाहों मे समाने की,
मन तरसता है
किसी का प्यार पाने को,
तब उस क्षण मे
तुम ही नाही
बल्कि
सभी के द्वारा
मैं ठुकरा दी जाती हूँ,
अछूत के समान
स्व केंद्रित बना दी जाती हूँ,
यहाँ तक की
तुम भी मेरे पास नाही आते हो
तब मैं टूट सी जाती हूँ
बस उस पल
मरने की चाह किया करती हूँ.
फिर अचानक अगले ही रोज
तुम्हारा प्यार
मुझे फिर जीवित कार देता है
अगले माह तक
जीने के लिए.
मैं
भूल कार वेदना के उन पलों को
सिमट जाती हूँ
तुम्हारी बाहों के घेरे में
पाने को युम्हारा अमित प्यार.

डॉक्टर आ कीर्तिवर्धन
9911323732

Sunday, September 27, 2009

दशहरा पर्व

कामनाएं.
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावन का संहार किया.
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंश का बंटाधार किया.
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पवन धरती से
दुष्टों को मार भागने की.
एक नहीं लाखों रावण हैं
संग हमारे रहते हैं
दहेज़ गरीबी अशिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं.
कुम्भकरण से नेता बैठे
मारीच से छली यहाँ
स्वार्थों की रुई कान मे उनके
आतंक पर देते न ध्यान.
आओ हम सब राम बने
कुछ लक्ष्मण का सा रूप धरें.
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को ख़तम करें.
शिक्षा के भी दीप जलाकर
रावण का भी अंत करें.
दशहरे पर्व की हार्दिक सुभकामनाएँ.
डॉ अ किर्तिवर्धन.

Monday, September 21, 2009

सुबह सवेरे

सुबह सवेरे
---------
चाहो जीवन मे कुछ बनना
सुबह सवेरे जल्दी उठना.
मात पिता को कर प्रणाम
फिर करना तुम नियमित काम.
पेट साफ फिर कुल्ला मंजन
तब करना स्नान और ध्यान.
प्रात काल का समय स्वर्णिम
पढ़ना खूब लगाकर ध्यान.

dr.a.kirtivardhan

Monday, September 14, 2009

yaad

१९७८ मे लिखी एक रचना भेज रहा हूँ.
एक एक क्षण बिना तुम्हारे
जैसे एक जन्म लगता है.
उलझन भरी प्रतीक्षाओं मे
जीवन एक बहम लगता है.
कभी कभी तो उ़म्र अचानक
लगती पूर्ण विराम हो गयी.
जब जब याद तुम्हारी आई
सारी नींद हराम हो गयी.

डॉ अ kirtivardhan

Sunday, September 6, 2009

आज की राजनीती मे अभिमन्यु वध

____________________अभिमन्यु वध _____________
एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया .
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे
द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.
अ नैतिकता के सामने नैतिकता का
ध्वज फिर तार तार हो गया.
भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके
सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया.
ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है
गुरु ड्रोन नि शब्द हैं सत्ता से उनकी यारी है
संजय निति के ज्ञाता हैं उनको निष्ठां प्यारी है
कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है
चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए
अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया
शकुनी की कुटिल चालों से
सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी
अब मानो नि शस्त्र है.

Sunday, August 23, 2009

समर्पण

समर्पण
कर दीजिये पूर्ण समर्पण अंहकार का
अपने प्रभु के सामने
देखिये फिर कृपा उसकी
क्या मिले संसार मे.
सबसे पहले शान्ति मिलती
फिर मिलता खजाना संतोष का
.जब त्यागी पर निंदा तुमने
प्रभु दोस्ती का संग मिला.
क्या खोया,क्या पाया
समर्पण मे न विचारिये
व्यापार नहीं है प्रभु भक्ति
बस देने का भाव लाइए

डॉ अ किर्तिवर्धन

Thursday, August 6, 2009

शब्दों मे

मैंने शब्दों में

भगवान को देखा

शैतान को देखा

आदमी तोबहुत देखे

पर

इंसान कोई कोई देखा।

इन्ही सब्दों में

मैंने प्यार को देखा

कदम कदम पर अंहकार भी देखा

धर्मात्मा तो बहुत देखे

पर

मानवता की खातिर

मददगार कोई कोई देखा।

इन्ही सब्दों में

मैंने चाह देखी

भगवान् पाने की

बुलंदियों पर जाने की

गिरते हुए भी मैंने बहुत देखे

पर गिरते को उठाने वाला

कोई कोई देखा।

इन्ही शब्दों में

भ्रष्टाचार को महिमा मंडित करते देखा

नारी की नग्नता को प्रदर्शित करते देखा

पर निर्लाजता पर चोट करते

कोई कोई देखा।

इन्हीशब्दों में

कामना करता हूँ इश्वर से

मुझे शक्ति दे

लेखनी मेरी चलती रहे

पर पीडा में लिखती रहे

पाप का भागी में banu

यश का भागी इश्वर रहे.

Saturday, August 1, 2009

मम्मी मुझे बताओ कैसे?

मम्मी मुझे बताओ कैसे?
कैसे आते आम पेड़ पर
और जमीन मे आलू
मम्मी मुझे बताओ कैसे
नाचे कूदे भालू?

कैसे आता चाँद गगन मे
और नीलगगन मे तारे
मम्मी मुझे बताओ कैसे
सूरज लाता भोर उजारे?

मैंने देखा चिडिया को
सुबह सवेरे आती
मम्मी मुझे बताओ कैसे
चिडिया इतना मीठा गाती?

कैसे बादल उडे गगन मे
फिर बरसी वरखा रानी
मम्मी मुझे बताओ कैसे
भीगे नाना नानी?
कैसे पंछी उडे गगन मे
और जमीन पर आते
मम्मी मुझे बताओ कैसे
पर्वत ऊँचे होते जाते?
डॉ अ किर्तिवर्धन
09911323732

Saturday, July 4, 2009

मेरी कविता

मेरी कविता
मेरी कविता
आँसू सम है
जो बिन नियम के चलते हैं
बस
भावों को दर्शाते हैं
बिना कहे शब्दों म कुछ भी
दिल के राज बता जाते हैं.
आँसू
बस
भावों की अनुभूति हैं
स्वयं रंग
कैनवास और कूची है.
वाही भाव
जब शब्दों मे आते हैं
शब्द ही रंग
और कूची बन जाते हैं
मेरे पन्नों के कैनवास पर

कविता बनकर
छा जाते हैं.
शब्द
स्वयं
कविता बन जाते हैं.
आ.कीर्तिवर्धन

Saturday, May 2, 2009

नया दौर

नए दौर के इस युग मे
सब कुछ उल्टा दिखता है
महँगी रोटी सस्ता मानव
गली-गली मे बिकता है।

कहीं पिघलते हिम पर्वत
हिमयुग का अंत बताते हैं
सूरज की आर्मी भी बढती
अंत जान का दीखता है।

अबला भी अब बनी है सबला
अंग प्रदर्शन खेल में
नैतिकता का पतन हुआ है
जिस्म गली मे बिकताहाई।

रिश्तों का भी अंत हो गया
भौतिकता के बाज़ार मे
कौन पिता और कौन है भ्राता
पैसे से बस रिश्ता है।

भ्रष्ट आचरण आम हो गया
रुपैया पैसा ख़ास हो गया
मानवता भी दम तोड़ रही
स्वार्थ दिलों मे दिखता है।

पत्नी सबसे प्यारी लगती
ससुराल भी न्यारी लगती
मात पिता संग घर मे रहना
अब तो दुष्कर लगता है।

पर्वत से वृक्षों का कटना
नदियों से जल का घटना
तनाव ग्रस्त मानव का देखो
जीवन संकट दीखता है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

नया दौर

मुझे इंसान बना दो

मुझे इंसान बना दो.____________________में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दोभटकता हूँ सब और,मुकाम बता दो.मिटटी के कण ,धूल हूँ,नहीं किसी काम कामुझको भी किसी नींव का,पाषाण बना दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..बिखरा हूँ हर तरफ,नहीं कोई पहचान हैदीप बन जल सकूँ राह में,जलना सिखा दो.बूढा हुआ हूँ उम्र से,समय व्यर्थ गवायाँकाम आ सकूँ किसी के,कोई राह बता दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..छल कपट मन मे भरा ,बस आदमी हूँ मेंदूब सा विनम्र ,पीपल सा महान बना दो.आंधियां जो गुजरें,उनके भी तलवे सहला सकूँइंसानियत की राह की,पहचान बता दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..जीवन है व्यर्थ,गर आदमी बना रहाइंसान बन सकूँ,कोई तदबीर बता दो.भटका हूँ उम्र भर,मंजिल की तलाश मेंमुझको भी नदी की,एक धार बना दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..नहीं चाह मेरी,में समंदर बन सकूँ,मीठा रहे पानी,कहीं प्यास बुझा दो.सूरज की गर्मी से जल,गर बादल बन गयाजन जन की प्यास बुझाने,धरती पर बरसा दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..डॉ. अ.कीर्तिवर्धन a.kirtivardhan@rediffmail.coma.kirtivardhan@gmail.com
यह मेरी कविता है परन्तु कॉपी पेस्ट के कारण ऐसे ही लिखी गई है.
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सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त _____________________
हम भी सदा ख्वाब देखते हैंदोस्तों को हरदम साथ देखते हैंजब भी जी चाहे उनसे मिलन का दिल से दिल के तार जोड़ते हैं.यादों की सुनहरी सीढियों पर चढ़करजमीन के जर्रों मे चाँद देखते हैं.हमने कुछ भी न खोया यहाँ परजो भी मिला उसका इतिहास खोजते हैं.तुम से जो साथी हमको मिले हैंखुदा को इसका शुक्रिया भेजते हैं.जब भी जी चाहे तुमसे मिलन कानजरें झुकाकर दिल मे देखते हैं.मित्रता की लौ को आगे बढ़ानानए मित्र बंधू जीवन मे लानाविचारों की अच्छी समाँ तुम जलानाख़्वाबों को सदा जीवन मे सजाना.डॉ अ.किर्तिवर्धन
सच्चाई का परिचय पत्र _________________
सूरज तुम सूरज होतुमहे बताना होगाअपना परिचय पत्र दिखाना होगा.जीवित हो या मरे हुए होयह भी बतलाना होगाजीवित रहने का साक्ष्य भी स्वयं जुटाना होगा.अनेक सूर्य अन्तरिक्ष मे डोल रहे हैंवैज्ञानिक नित नए रहस्य खोल रहे हैंऐसा न होकुछ रिश्वत न देने के चक्कर मेतुमको अपना देवत्व गवाना होगा.सूरज तुम सूरज होतुम्हे बताना होगा.अनंत काल से ऊर्जा केतुम स्रोत्र बने होहनुमान के भी तुम एक बार भोग बने हो.स्रष्टि का कण कण जिससे आह्लादित होजिसकी गर्मी का मूल्यांकनकोई नहीं कर सकता हो,उसकी शक्ति कोमानव ने ललकारा हैतुम्हारे विरूद्वएक दुश्प्रसार चलाया हैतुम्हारी ऊष्मा को हीउसका आधार बनाया है.तमको अपना प्रचंड रूप दिखाना होगाअपनी शक्ति का मानव कोभान कराना होगा.सूरज तुम सूरज होतुम्हे बताना होगासच्चाई का परिचय पत्रदिखाना होगा.डॉ अ कीर्तिवर्धन

सच्चाई का परिचय पत्र

समर्पण

कर दीजिये पूर्ण समर्पण
अंहकार का
अपने प्रभु के सामने
देखिये फिर कृपा उसकी
क्या मिले संसार मे।
सबसे पहले शान्ति मिलती
फिर मिलता खजाना
संतोष का,
जब त्यागी परनिंदा तूमने
प्रभु भक्ति का संग मिला।
क्या खोया,क्या पाया
समर्पण मे ना विचारिये
व्यापार नही है प्रभु भक्ति
बस देने का भाव लाईये।

डॉ.अ.कीर्तिवर्धन