Wednesday, November 9, 2011

बाजारवाद

बाजारवाद --
मैंने कहा
भारतीय संस्कृति मे
बेटी के घर का खाना
उचित नहीं माना जाता,
हमारी परम्परा
बहन ,बेटी को देने की है
उनसे कुछ भी लेने की नहीं|

लोगों ऩे मुझे पढ़ा,सुना और
अतीत की दिवार पर चस्पा कर दिया,
मुझे भारी जवानी मे
बूढ़ा करार दे दिया गया|
बाजारवाद के इस दौर मे
सभ्यता और संस्कृति के
शाश्वत नियमों का उल्लंघन,
अंतहीन,प्रयोजन रहित
बहस करना
वर्तमान बता दिया|
और
एक नई बहस को जन्म दिया
कि नारी
मात्र वस्तु है,भोग्य है
तथा
उसे विज्ञापन बना दिया,
घर,दफ्तर से
दिवार पर लगे पोस्टर तक|
और नारी खुश हो गई
पैसों कि चमक मे|
शायद
इन आधुनिक बाजारवादी लोगों के लिए
कल बहन और बेटी भी
वस्तु / विज्ञापन
या भोग्य बन जायेंगी
यही इनका भविष्य होगा|
और हम
काल के गर्त मे समाकर
प्राचीन असभ्य युग मे
वापस आ जायेंगे |

सच ही तो है
इतिहास स्वयं को दोहराता है |
स्रष्टि के विकास क्रम मे
मनुष्य नंगा रहता था,
आज हम पुनः
बाजारवाद की दौड़ मे
सभ्यता को छोड़कर
नग्नता की और बढ़ रहे हैं,
मन से भी और तन से भी |
प्राचीन कबीलाई संस्कृति को
पुनः अपना रहे हैं,
जातिवाद,क्षेत्रवाद व धर्मवाद के
नए कबीले
तैयार किये जा रहे हैं|

असभ्य मानव
अज्ञानवश पशुओं को खाता था
आज बाजारवाद मे
प्रायोजित तरीकों से
पशु-पक्षियों को
खादय बताया जा रहा है,
जिसके कारण
अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गयी
कुछ होने के कगार पर हैं,
मगर हम सभ्य हैं,
बाज़ार की भाषा मे
विकास कर रहे हैं,
जंगलों को काटकर
मकान तथा
अस्त्र शस्त्र निर्माण कर रहे हैं|
अब हैजे या प्लेग जैसी
बीमारी की जरुरत नहीं,
सिर्फ एक बम ही काफी है
लाखों लोग नींद मे सो जायेंगे,
उनके संसाधनों पर
हम कब्ज़ा जमायेंगे|

यही तो होता था,
कबीलों मे भी
जिसने जीता
स्त्री,पुरुष,धन संपत्ति
सब उसकी
और आज भी यही होता है
जंगल के राजा
शेर के व्यवहार मे
बंदरों के संसार मे,
और
इन आधुनिकों के
उन्मुक्त विचार मे,घर,व्यापार मे|

हम
सुनहरे कल की और बढ़ रहे हैं,
वह सुनहरा कल
जिसका आधार
बीता हुआ कल है,
जिसका वर्तमान
लंगड़ा व अँधा है,
जिसका भविष्य
अंधकारमय है,
और
जो स्थिर होना चाहता है
बाजारवाद के
खोखले कन्धों पर |

तमसों माँ ज्योतिर्गमय |

डॉ अ कीर्तिवर्धन
9911323732

Wednesday, August 24, 2011

भ्रष्टाचार------
सारे देश में भ्रष्टाचार अब आम हो गया है,
दूध की रखवाली बिल्ली का काम हो गया है|

दूध पीने की फितरत,बिल्ली की पहले से थी,
रखवाली पर उसे बिठाना,संविधान हो गया है|

खाने लगी है बाड़ ही, जबसे खेत को,
फसलें उगाना अमन की,हलकान हो गया है|

वो ईमानदार हैं, इसमें संदेह नहीं किसी को,
चोरों को संरक्षण भी,उन्ही का काम हो गया है|

जिन लोगों ऩे लूटा, मेरे देश का धन और मान,
उन्ही को बचाना, सरदार का काम हो गया है|

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार------
सारे देश में भ्रष्टाचार अब आम हो गया है,
दूध की रखवाली बिल्ली का काम हो गया है|

दूध पीने की फितरत,बिल्ली की पहले से थी,
रखवाली पर उसे बिठाना,संविधान हो गया है|

खाने लगी है बाड़ ही, जबसे खेत को,
फसलें उगाना अमन की,हलकान हो गया है|

वो ईमानदार हैं, इसमें संदेह नहीं किसी को,
चोरों को संरक्षण भी,उन्ही का काम हो गया है|

जिन लोगों ऩे लूटा, मेरे देश का धन और मान,
उन्ही को बचाना, सरदार का काम हो गया है|

Saturday, June 25, 2011

मेरा देश भारत

भारत
-----------------------------
कण-कण में जहाँ शंकर बसते,बूँद-बूँद मे गंगा,
जिसकी विजय गाथा गाता,विश्व विजयी तिरंगा|
सागर जिसके चरण पखारे,और मुकुट हिमालय,
जन-जन में मानवता बसती,हर मन निर्मल,चंगा|
वृक्ष धरा के आभूषण,और रज जहाँ कि चन्दन,
बच्चा-बच्चा राम-कृष्ण सा,बहती ज्ञान कि गंगा|
विश्व को दिशा दिखाती,जिसकी,आज भी वेद ऋचाएं,
कर्मयोग प्रधान बना,गीता का सन्देश है चंगा|
'अहिंसा तथा शांति' मंत्र, जहाँ धर्म के मार्ग,
त्याग कि पराकाष्ठा होती,जिसे कहते 'महावीर'सा नंगा|
भूत-प्रेत और अंध विश्वाश का,देश बताते पश्छिम वाले,
फिर भी हम है विश्व गुरु,अध्यातम सन्देश है चंगा|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२

Thursday, June 9, 2011

लोग

लोग

अक्सर हमसे डरते लोग,
महज दिखावा करते लोग|
हम भी यह सब खूब समझते,
चापलूसी क्यों करते लोग|
वो हैं चोरों के सरदार,
कहने से क्यों डरते लोग|
सफ़ेद भेडिये खुले घूमते,
क्यों नहीं उन्हें पकड़ते लोग|
कहते हैं सब बेईमान,
क्यों नहीं उन्हें बदलते लोग|
अबकी बार चुनाव होगा,
फिर से उन्हें चुनेंगे लोग|
लूट रहे जो अपने देश को,
कहते देश भक्त हैं लोग|
जन्म दिया और बड़ा किया
घर के बाहर खड़े क्यों लोग?
मात पिता जीवित भगवान
क्यों नहीं सार समझते लोग?
माँ-बाप कि कदर न करते
मरे हुए से बदतर लोग|
जीवन,मरण,लाभ,यश,हानि
कर्मो का फल कहते लोग|
मानवता कि राह चले जो
अक्सर दुखिया रहते लोग|
भ्रष्ट-बेईमान क्यों कर फूले
बतला दो तुम ज्ञानी लोग |
साँसों कि गिनती है सिमित
बतलाते हैं साधू लोग|
तेरा मेरा करते लड़ते
जीवन व्यर्थ गंवाते लोग|
आज भी हम हैं विश्व गुरु
क्यों नहीं बात समझते लोग?
भारत सदा ज्ञान का केंद्र
कहते हैं दुनिया के लोग|
ज्ञान कि भाषा कहाँ खो गई
ढूंढ रहे हैं ज्ञानी लोग?
अंग्रेजी को महान बताते
मेरे अपने घर के लोग|
सबसे बड़ा बन गया रुपैया
ऐसा कहते ज्यादा लोग|
फिर भी धनी दुखी क्यों रहता
समझाते नहीं सयाने लोग|
देश ऩे हमको दिया है सब कुछ
क्यों नहीं गर्व समझते लोग?
लूट रहे जो अपने देश को
सचमुच बड़े कमीने लोग|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
kirtivardhan.blogspot.com
a.kirtivardhan@gmail.com
box.net/kirtivardhan
09911323732

लोग

Saturday, May 21, 2011

मुखौटों क़ी दुनिया

मुखौटों कि दुनिया
मुखौटों कि दुनिया मे रहता है आदमी,
मुखौटों पर मुखौटें लगता है आदमी|
बार बार बदलकर देखता है मुखौटा,
फिर नया मुखौटा लगता है आदमी|
मुखौटों के खेल मे माहिर है आदमी,
गिरगिट को भी रंग दिखाता है आदमी|
शैतान भी लगाकर इंसानियत का मुखौटा,
आदमी को छलने को तैयार है आदमी|
मजहब के ठेकेदार भी अब लगाते है मुखौटे
देते हैं पैगाम,बस मरता है आदमी|
लगाने लगे मुखौटे जब देश के नेता,
मुखौटों के जाल मे,फंस गया आदमी|
जाति,धर्म का जब लगाया मुखौटा,
आदमी का दुश्मन बन गया है आदमी|
देखकर नेताओं का मुखौटा अनोखा,
हैरान और परेशान रह गया है आदमी|
कभी भूल जाता है मुखौटा बदलना आदमी
शै और मात मे फंस जाता है आदमी|
मुखौटों के खेल मे इतना उलझ गया आदमी
खुद की ही पहचान भूल गया है आदमी|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
9911323732
a.kirtivardhan@gmail.com
kirtivardhan.blogspot.com