Saturday, May 2, 2009

नया दौर

नए दौर के इस युग मे
सब कुछ उल्टा दिखता है
महँगी रोटी सस्ता मानव
गली-गली मे बिकता है।

कहीं पिघलते हिम पर्वत
हिमयुग का अंत बताते हैं
सूरज की आर्मी भी बढती
अंत जान का दीखता है।

अबला भी अब बनी है सबला
अंग प्रदर्शन खेल में
नैतिकता का पतन हुआ है
जिस्म गली मे बिकताहाई।

रिश्तों का भी अंत हो गया
भौतिकता के बाज़ार मे
कौन पिता और कौन है भ्राता
पैसे से बस रिश्ता है।

भ्रष्ट आचरण आम हो गया
रुपैया पैसा ख़ास हो गया
मानवता भी दम तोड़ रही
स्वार्थ दिलों मे दिखता है।

पत्नी सबसे प्यारी लगती
ससुराल भी न्यारी लगती
मात पिता संग घर मे रहना
अब तो दुष्कर लगता है।

पर्वत से वृक्षों का कटना
नदियों से जल का घटना
तनाव ग्रस्त मानव का देखो
जीवन संकट दीखता है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

नया दौर

मुझे इंसान बना दो

मुझे इंसान बना दो.____________________में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दोभटकता हूँ सब और,मुकाम बता दो.मिटटी के कण ,धूल हूँ,नहीं किसी काम कामुझको भी किसी नींव का,पाषाण बना दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..बिखरा हूँ हर तरफ,नहीं कोई पहचान हैदीप बन जल सकूँ राह में,जलना सिखा दो.बूढा हुआ हूँ उम्र से,समय व्यर्थ गवायाँकाम आ सकूँ किसी के,कोई राह बता दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..छल कपट मन मे भरा ,बस आदमी हूँ मेंदूब सा विनम्र ,पीपल सा महान बना दो.आंधियां जो गुजरें,उनके भी तलवे सहला सकूँइंसानियत की राह की,पहचान बता दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..जीवन है व्यर्थ,गर आदमी बना रहाइंसान बन सकूँ,कोई तदबीर बता दो.भटका हूँ उम्र भर,मंजिल की तलाश मेंमुझको भी नदी की,एक धार बना दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..नहीं चाह मेरी,में समंदर बन सकूँ,मीठा रहे पानी,कहीं प्यास बुझा दो.सूरज की गर्मी से जल,गर बादल बन गयाजन जन की प्यास बुझाने,धरती पर बरसा दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..डॉ. अ.कीर्तिवर्धन a.kirtivardhan@rediffmail.coma.kirtivardhan@gmail.com
यह मेरी कविता है परन्तु कॉपी पेस्ट के कारण ऐसे ही लिखी गई है.
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सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त _____________________
हम भी सदा ख्वाब देखते हैंदोस्तों को हरदम साथ देखते हैंजब भी जी चाहे उनसे मिलन का दिल से दिल के तार जोड़ते हैं.यादों की सुनहरी सीढियों पर चढ़करजमीन के जर्रों मे चाँद देखते हैं.हमने कुछ भी न खोया यहाँ परजो भी मिला उसका इतिहास खोजते हैं.तुम से जो साथी हमको मिले हैंखुदा को इसका शुक्रिया भेजते हैं.जब भी जी चाहे तुमसे मिलन कानजरें झुकाकर दिल मे देखते हैं.मित्रता की लौ को आगे बढ़ानानए मित्र बंधू जीवन मे लानाविचारों की अच्छी समाँ तुम जलानाख़्वाबों को सदा जीवन मे सजाना.डॉ अ.किर्तिवर्धन
सच्चाई का परिचय पत्र _________________
सूरज तुम सूरज होतुमहे बताना होगाअपना परिचय पत्र दिखाना होगा.जीवित हो या मरे हुए होयह भी बतलाना होगाजीवित रहने का साक्ष्य भी स्वयं जुटाना होगा.अनेक सूर्य अन्तरिक्ष मे डोल रहे हैंवैज्ञानिक नित नए रहस्य खोल रहे हैंऐसा न होकुछ रिश्वत न देने के चक्कर मेतुमको अपना देवत्व गवाना होगा.सूरज तुम सूरज होतुम्हे बताना होगा.अनंत काल से ऊर्जा केतुम स्रोत्र बने होहनुमान के भी तुम एक बार भोग बने हो.स्रष्टि का कण कण जिससे आह्लादित होजिसकी गर्मी का मूल्यांकनकोई नहीं कर सकता हो,उसकी शक्ति कोमानव ने ललकारा हैतुम्हारे विरूद्वएक दुश्प्रसार चलाया हैतुम्हारी ऊष्मा को हीउसका आधार बनाया है.तमको अपना प्रचंड रूप दिखाना होगाअपनी शक्ति का मानव कोभान कराना होगा.सूरज तुम सूरज होतुम्हे बताना होगासच्चाई का परिचय पत्रदिखाना होगा.डॉ अ कीर्तिवर्धन

सच्चाई का परिचय पत्र

समर्पण

कर दीजिये पूर्ण समर्पण
अंहकार का
अपने प्रभु के सामने
देखिये फिर कृपा उसकी
क्या मिले संसार मे।
सबसे पहले शान्ति मिलती
फिर मिलता खजाना
संतोष का,
जब त्यागी परनिंदा तूमने
प्रभु भक्ति का संग मिला।
क्या खोया,क्या पाया
समर्पण मे ना विचारिये
व्यापार नही है प्रभु भक्ति
बस देने का भाव लाईये।

डॉ.अ.कीर्तिवर्धन