__-तीन बातें_
सिमट रहा है------नदी का नीर
स्त्री का चीर
मन का धीर|
फ़ैल रहा है-------भ्रष्टाचार का जाल
मानव का दुर्व्यवहार
औरत पर अत्याचार|
कम हो रहा है--बच्चों मे सदाचार
परिवार मे प्यार
रिश्तों का संसार|
बढ़ रहा है------नशे का व्यापार
धर्मान्धता का बुखार
शिक्षा का कारोबार |
बचाना होगा---नेताओं के भाषण से
मुफ्त के राशन से
सरकारी कुशासन से |
मिटानी होगी--अश्त्रों-शस्त्रों कि जड़
आतंकवाद कि हद
पाकिस्तान कि सरहद|
Dr. A.Kirti vardhan
09911323732
http://kirtivardhan.blogspot.com/
Sunday, February 27, 2011
Saturday, February 26, 2011
खुद का साया
कभी-कभी खुद का साया देखकर भी
मैं डर जाता हूँ
धूप कि क्या बात करूँ
छाया मे भी निकालने से घबराता हूँ|
आतंकवाद ने जब से अपनी बाहें फैलाई हैं
नेताओं से उनकी साजिश
सुर्खी मे आई है
मैं बारूद कि गंध कि क्या बात करूँ
सुगंध के व्यापर से भी घबराता हूँ
अब मैं ख्वाबों मे भी
संभल संभल कर चलता हूँ,
मैं खुद का साया देखकर भी घबराता हूँ|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
kirtivardhan.blogspot.com
मैं डर जाता हूँ
धूप कि क्या बात करूँ
छाया मे भी निकालने से घबराता हूँ|
आतंकवाद ने जब से अपनी बाहें फैलाई हैं
नेताओं से उनकी साजिश
सुर्खी मे आई है
मैं बारूद कि गंध कि क्या बात करूँ
सुगंध के व्यापर से भी घबराता हूँ
अब मैं ख्वाबों मे भी
संभल संभल कर चलता हूँ,
मैं खुद का साया देखकर भी घबराता हूँ|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
kirtivardhan.blogspot.com
Tuesday, February 15, 2011
samandar
समंदर सी गहराई मन में हो
ज्ञान के मोती तुम्हारे धन में हों
अथाह जल भरा जैसे सागर में
मानवता हिलोरें ले ,जीवन में हो ।
खारापन समंदर का न कुछ काम आयेगा
प्यासा मर रहा मानव,प्यास कैसे बुझायेगा
भटकोगे समंदर में ,तो मंजिल कैसे पाओगे
शरण प्रभु की आ जाओ ,किनारा भी मिल जायेगा।
समंदर फैंकता बाहर गन्दगी अवशेष को
मन बनाएं आओ निर्मल दूर कर निज दोष को
विशालता सागर सी अपने जीवन में भरे
करें जीवन समर्पित उत्थान में निज देश को।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732
kirtivardhan.blogspot.com
ज्ञान के मोती तुम्हारे धन में हों
अथाह जल भरा जैसे सागर में
मानवता हिलोरें ले ,जीवन में हो ।
खारापन समंदर का न कुछ काम आयेगा
प्यासा मर रहा मानव,प्यास कैसे बुझायेगा
भटकोगे समंदर में ,तो मंजिल कैसे पाओगे
शरण प्रभु की आ जाओ ,किनारा भी मिल जायेगा।
समंदर फैंकता बाहर गन्दगी अवशेष को
मन बनाएं आओ निर्मल दूर कर निज दोष को
विशालता सागर सी अपने जीवन में भरे
करें जीवन समर्पित उत्थान में निज देश को।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732
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Saturday, February 5, 2011
अग्नि की उड़ान
आज आपके पास अपनी प्रथम पुस्तक "मेरी उड़ान" से एक कविता भेज रहा हूँ|यह रचना हमारे देश के सबसे लोक प्रिय राष्ट्रपति माननीय अब्दुल कलाम साहब के जीवन पर आधारित है|आप अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएँ| धन्यवाद्| अग्नि की उड़ान............
इतिहास के पन्नों मे,
चंद ही लोग
जमीन से उठकर
आकाश पर छाये हैं
अन्यथा वही राजा महाराजा
रंग रूप बदलकर
सत्ता शीर्ष पर छाये हैं|
आप धरा पुत्र हैं,
आम आदमी के
सामूहिक सुख दुःख के
प्रतीक हैं|
आपने देखा है
जीवन को करीब से
शिक्षा का मकसद ,सिखा है रकीब से,
पंडित से सीखी,ज्ञान की बातें,
मौलवी से पढ़ी,कुरआन की आयतें,
परिंदों से सिखा,आज़ादी का मतलब,
"पक्षी-शास्त्री "से सिखा,धर्म-निरपेक्षता का अर्थ|
सच मानों जब से मैं
अग्नि मे उड़ा हूँ,
मैंने पाया अपने अंदर
एक विस्तृत आकाश,
जहाँ छुपा था
मेरे बचपन के सपने का राज,
हर इंसान मे देश भक्ति का जज्बा होगा,
सम्पूर्ण विश्व पर
मानवता का कब्जा होगा|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
इतिहास के पन्नों मे,
चंद ही लोग
जमीन से उठकर
आकाश पर छाये हैं
अन्यथा वही राजा महाराजा
रंग रूप बदलकर
सत्ता शीर्ष पर छाये हैं|
आप धरा पुत्र हैं,
आम आदमी के
सामूहिक सुख दुःख के
प्रतीक हैं|
आपने देखा है
जीवन को करीब से
शिक्षा का मकसद ,सिखा है रकीब से,
पंडित से सीखी,ज्ञान की बातें,
मौलवी से पढ़ी,कुरआन की आयतें,
परिंदों से सिखा,आज़ादी का मतलब,
"पक्षी-शास्त्री "से सिखा,धर्म-निरपेक्षता का अर्थ|
सच मानों जब से मैं
अग्नि मे उड़ा हूँ,
मैंने पाया अपने अंदर
एक विस्तृत आकाश,
जहाँ छुपा था
मेरे बचपन के सपने का राज,
हर इंसान मे देश भक्ति का जज्बा होगा,
सम्पूर्ण विश्व पर
मानवता का कब्जा होगा|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
Thursday, February 3, 2011
कविता
क्या कविता लिखना आसान है?इस सवाल का जवाब मैंने स्वयं के अनुभव से तलाशने का प्रयास किया है|आप की प्रतिक्रिया चाहता हूँ|
------कविता--------
जब कभी सोचता हूँ कविता लिखना
भाव नहीं आते हैं,
गहरे समंदर मे,सीप के मोती से
कहीं खो जाते हैं|
कभी-कभी अचानक
कविता
मेरे जहन मे मचल जाती है,
मन आतुर कर जाती है|
यदि तुरंत ही विचारों को
लेखनी से नहीं बांधा,तो
लहर के सामान आकर,
फिर वापस चली जाती है|
कविता
बड़ी चंचला है|
कविता मन के जंगल मे
हिरणी सी कुलाचें भरती,
कभी कोयक सी कूकती,
तो कभी फुदकती
मन के आँगन मे
सोन चिरैया सी|
कविता
तभी कविता बन पाती
जब मन के आँगन मे
फुदकते भावों को
लेखनी से कागज पर कैद करता हूँ|
मैं जानता हूँ कैद करने से
आज़ादी ख़त्म हो जाती है|
पर
कविता की आज़ादी शायद
लेखनी मे बंध कर ही
नया जीवन पाती है|
कविता
मेरे पन्नों मे सिमट जाती है,
फिर कविता, किताब मे छप कर
जीवन्त हो जाती है|
कविता
वात्सल्य बन जाती है|
कविता
प्रेरणा बन जाती है|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
http://kirtivardhan.blogspot.com/
------कविता--------
जब कभी सोचता हूँ कविता लिखना
भाव नहीं आते हैं,
गहरे समंदर मे,सीप के मोती से
कहीं खो जाते हैं|
कभी-कभी अचानक
कविता
मेरे जहन मे मचल जाती है,
मन आतुर कर जाती है|
यदि तुरंत ही विचारों को
लेखनी से नहीं बांधा,तो
लहर के सामान आकर,
फिर वापस चली जाती है|
कविता
बड़ी चंचला है|
कविता मन के जंगल मे
हिरणी सी कुलाचें भरती,
कभी कोयक सी कूकती,
तो कभी फुदकती
मन के आँगन मे
सोन चिरैया सी|
कविता
तभी कविता बन पाती
जब मन के आँगन मे
फुदकते भावों को
लेखनी से कागज पर कैद करता हूँ|
मैं जानता हूँ कैद करने से
आज़ादी ख़त्म हो जाती है|
पर
कविता की आज़ादी शायद
लेखनी मे बंध कर ही
नया जीवन पाती है|
कविता
मेरे पन्नों मे सिमट जाती है,
फिर कविता, किताब मे छप कर
जीवन्त हो जाती है|
कविता
वात्सल्य बन जाती है|
कविता
प्रेरणा बन जाती है|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
http://kirtivardhan.blogspot.com/
Wednesday, February 2, 2011
आओ बच्चों खेलें खेल
आओ बच्चों खेलें खेल
दोस्तों,इस बाल कविता पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ|
आओ बच्चों खेलें खेल
चलो बनायें मिलकर रेल|
रामू तुम इंजन बन जाना,
सबसे आगे दौड़ लगाना|
सीता,गीता,सोनू,मोनू,
सबको तुम संग ले जाना|
ये सब मिल डिब्बे बन जाएँ,
दीपू तुम झंडी दिखलाना|
गाँव शहर से बढ़ती जाती,
देश प्रेम की अलख जगाती|
छुक-छुक,छुक-छुक चलती रेल,
आप बच्चों खेलें खेल|
सिखलाती है हमको रेल,
मिलकर रहते,बढ़ता मेल|
देश हमारा बहुत विशाल,
दिखलाती है हमको रेल|
आओ बच्चों खेलें खेल,
चलो बनायें मिलकर रेल|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
दोस्तों,इस बाल कविता पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ|
आओ बच्चों खेलें खेल
चलो बनायें मिलकर रेल|
रामू तुम इंजन बन जाना,
सबसे आगे दौड़ लगाना|
सीता,गीता,सोनू,मोनू,
सबको तुम संग ले जाना|
ये सब मिल डिब्बे बन जाएँ,
दीपू तुम झंडी दिखलाना|
गाँव शहर से बढ़ती जाती,
देश प्रेम की अलख जगाती|
छुक-छुक,छुक-छुक चलती रेल,
आप बच्चों खेलें खेल|
सिखलाती है हमको रेल,
मिलकर रहते,बढ़ता मेल|
देश हमारा बहुत विशाल,
दिखलाती है हमको रेल|
आओ बच्चों खेलें खेल,
चलो बनायें मिलकर रेल|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
जनसंख्या नियंत्रण
जनसंख्या नियंत्रण
जनसंख्या नियंत्रण पर
उन्होंने सोच विचार किया
समलेंगिक विवाह द्वारा
समस्या का उपचार किया|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732
जनसंख्या नियंत्रण पर
उन्होंने सोच विचार किया
समलेंगिक विवाह द्वारा
समस्या का उपचार किया|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732
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