वेदना
प्रत्येक माह मे एक बार
तीन चार दीन के लिए
जब पीड़ित होती हूँ
एक वेदना से,
टूटता है बदन मेरा
आहत होती हूँ मैं
दर्द ना सहने से,
जब मुझे होती है
जरूरत
किसी की संवेदनाओं की
चाहत होती है
तुम्हारी बाहों मे समाने की,
मन तरसता है
किसी का प्यार पाने को,
तब उस क्षण मे
तुम ही नाही
बल्कि
सभी के द्वारा
मैं ठुकरा दी जाती हूँ,
अछूत के समान
स्व केंद्रित बना दी जाती हूँ,
यहाँ तक की
तुम भी मेरे पास नाही आते हो
तब मैं टूट सी जाती हूँ
बस उस पल
मरने की चाह किया करती हूँ.
फिर अचानक अगले ही रोज
तुम्हारा प्यार
मुझे फिर जीवित कार देता है
अगले माह तक
जीने के लिए.
मैं
भूल कार वेदना के उन पलों को
सिमट जाती हूँ
तुम्हारी बाहों के घेरे में
पाने को युम्हारा अमित प्यार.
डॉक्टर आ कीर्तिवर्धन
9911323732
Monday, September 28, 2009
Sunday, September 27, 2009
दशहरा पर्व
कामनाएं.
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावन का संहार किया.
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंश का बंटाधार किया.
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पवन धरती से
दुष्टों को मार भागने की.
एक नहीं लाखों रावण हैं
संग हमारे रहते हैं
दहेज़ गरीबी अशिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं.
कुम्भकरण से नेता बैठे
मारीच से छली यहाँ
स्वार्थों की रुई कान मे उनके
आतंक पर देते न ध्यान.
आओ हम सब राम बने
कुछ लक्ष्मण का सा रूप धरें.
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को ख़तम करें.
शिक्षा के भी दीप जलाकर
रावण का भी अंत करें.
दशहरे पर्व की हार्दिक सुभकामनाएँ.
डॉ अ किर्तिवर्धन.
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावन का संहार किया.
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंश का बंटाधार किया.
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पवन धरती से
दुष्टों को मार भागने की.
एक नहीं लाखों रावण हैं
संग हमारे रहते हैं
दहेज़ गरीबी अशिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं.
कुम्भकरण से नेता बैठे
मारीच से छली यहाँ
स्वार्थों की रुई कान मे उनके
आतंक पर देते न ध्यान.
आओ हम सब राम बने
कुछ लक्ष्मण का सा रूप धरें.
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को ख़तम करें.
शिक्षा के भी दीप जलाकर
रावण का भी अंत करें.
दशहरे पर्व की हार्दिक सुभकामनाएँ.
डॉ अ किर्तिवर्धन.
Monday, September 21, 2009
सुबह सवेरे
सुबह सवेरे
---------
चाहो जीवन मे कुछ बनना
सुबह सवेरे जल्दी उठना.
मात पिता को कर प्रणाम
फिर करना तुम नियमित काम.
पेट साफ फिर कुल्ला मंजन
तब करना स्नान और ध्यान.
प्रात काल का समय स्वर्णिम
पढ़ना खूब लगाकर ध्यान.
dr.a.kirtivardhan
---------
चाहो जीवन मे कुछ बनना
सुबह सवेरे जल्दी उठना.
मात पिता को कर प्रणाम
फिर करना तुम नियमित काम.
पेट साफ फिर कुल्ला मंजन
तब करना स्नान और ध्यान.
प्रात काल का समय स्वर्णिम
पढ़ना खूब लगाकर ध्यान.
dr.a.kirtivardhan
Monday, September 14, 2009
yaad
१९७८ मे लिखी एक रचना भेज रहा हूँ.
एक एक क्षण बिना तुम्हारे
जैसे एक जन्म लगता है.
उलझन भरी प्रतीक्षाओं मे
जीवन एक बहम लगता है.
कभी कभी तो उ़म्र अचानक
लगती पूर्ण विराम हो गयी.
जब जब याद तुम्हारी आई
सारी नींद हराम हो गयी.
डॉ अ kirtivardhan
एक एक क्षण बिना तुम्हारे
जैसे एक जन्म लगता है.
उलझन भरी प्रतीक्षाओं मे
जीवन एक बहम लगता है.
कभी कभी तो उ़म्र अचानक
लगती पूर्ण विराम हो गयी.
जब जब याद तुम्हारी आई
सारी नींद हराम हो गयी.
डॉ अ kirtivardhan
Sunday, September 6, 2009
आज की राजनीती मे अभिमन्यु वध
____________________अभिमन्यु वध _____________
एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया .
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे
द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.
अ नैतिकता के सामने नैतिकता का
ध्वज फिर तार तार हो गया.
भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके
सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया.
ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है
गुरु ड्रोन नि शब्द हैं सत्ता से उनकी यारी है
संजय निति के ज्ञाता हैं उनको निष्ठां प्यारी है
कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है
चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए
अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया
शकुनी की कुटिल चालों से
सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी
अब मानो नि शस्त्र है.
एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया .
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे
द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.
अ नैतिकता के सामने नैतिकता का
ध्वज फिर तार तार हो गया.
भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके
सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया.
ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है
गुरु ड्रोन नि शब्द हैं सत्ता से उनकी यारी है
संजय निति के ज्ञाता हैं उनको निष्ठां प्यारी है
कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है
चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए
अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया
शकुनी की कुटिल चालों से
सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी
अब मानो नि शस्त्र है.
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