मुझे इंसान बना दो.____________________में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दोभटकता हूँ सब और,मुकाम बता दो.मिटटी के कण ,धूल हूँ,नहीं किसी काम कामुझको भी किसी नींव का,पाषाण बना दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..बिखरा हूँ हर तरफ,नहीं कोई पहचान हैदीप बन जल सकूँ राह में,जलना सिखा दो.बूढा हुआ हूँ उम्र से,समय व्यर्थ गवायाँकाम आ सकूँ किसी के,कोई राह बता दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..छल कपट मन मे भरा ,बस आदमी हूँ मेंदूब सा विनम्र ,पीपल सा महान बना दो.आंधियां जो गुजरें,उनके भी तलवे सहला सकूँइंसानियत की राह की,पहचान बता दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..जीवन है व्यर्थ,गर आदमी बना रहाइंसान बन सकूँ,कोई तदबीर बता दो.भटका हूँ उम्र भर,मंजिल की तलाश मेंमुझको भी नदी की,एक धार बना दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..नहीं चाह मेरी,में समंदर बन सकूँ,मीठा रहे पानी,कहीं प्यास बुझा दो.सूरज की गर्मी से जल,गर बादल बन गयाजन जन की प्यास बुझाने,धरती पर बरसा दो.में हूँ बस आदमी,मुझे इंसान बना दो..डॉ. अ.कीर्तिवर्धन a.kirtivardhan@rediffmail.coma.kirtivardhan@gmail.com
यह मेरी कविता है परन्तु कॉपी पेस्ट के कारण ऐसे ही लिखी गई है.
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Saturday, May 2, 2009
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